1 मैं मींच कर आँखें कि जैसे क्षितिज तुमको खोजता हूँ।
2 ओ हमारे साँस के सूर्य! साँस की गंगा अनवरत बह रही है। तुम कहाँ डूबे हुए हो?
हिंदी समय में शमशेर बहादुर सिंह की रचनाएँ
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