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सोने के सागर में अहरह
एक नाव है
(नाव वह मेरी है)
सूरज का गोल पाल सन्ध्या के
सागर में अहरह
दोहरा है...
ठहरा है...
(पाल वो तुम्हारा है)
एक दिशा नीचे है
एक दिशा ऊपर है
यात्री ओ!
एक दिशा आगे है
एक दिशा पीछे है
यात्रिओ!
हम-तुम नाविक हैं
इस दस ओर के :
अनुभव एक हैं
दस रस ओर के :
यात्रिओ!
आओ, इकहरी हैं लहरें
अहरह।
सन्ध्या, ओ सन्ध्या! ठहर -
मत बह!
अमरन मौन एक भाव है
(और वह भाव हमारा है!)
ओ मन ओ
तू एक नाव है!
(और वह नाव हमारी है!)
[1951]
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