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कविता

अज्ञेय से

शमशेर बहादुर सिंह


जो नहीं है
जैसे कि 'सुरुचि'
       उसका गम क्‍या?
       वह नहीं है।

किससे लड़ना?

रुचि तो है शान्ति,
            स्थि‍रता,
      काल-क्षण में
      एक सौन्दर्य की
            मौन अमरता।

अस्थिर क्‍यों होना
फिर?

जो है
       उसे ही क्‍यों न सँजोना?
       उसी के क्‍यों न होना!-
       जो कि है।

जो नहीं है
जैसे कि सुरुचि
उसका गम क्‍या?
वह नहीं है।

 


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