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कविता

मेरे पंख कट गए हैं

रमानाथ अवस्थी


मेरे पंख कट गये हैं
वरना गगन को गाता

कोई मुझे सुनाओ
फिर से वही कहानी
कैसे हुई थी मीरा
घनश्याम की दीवानी
मीरा के गीत को भी
कोई विष रहा सताता

कभी दुनिया के दिखावे
कभी खुद में डूबता हूँ
थोड़ी देर ख़ुश हुआ तो
बड़ी देर ऊबता हूँ

मेरा दिल ही मेरा दुश्मन
कैसे दोस्ती निभाता

मेरे पास वह नहीं है
जो होना चाहिए था
मैं मुस्कराया तब भी
जब रोना चाहिए था
मुझे सब ने शक से देखा
मैं किसको क्या बताता

वो जो नाव डूबनी है
मैं उसी को खे रहा हूँ
तुम्हें डूबने से पहले
एक भेद दे रहा हूँ
मेरे पास कुछ नहीं है
जो तुमसे मैं छिपाता

 


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