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					पपीते के पेड़ की तरह मेरी पत्नी 
					मैं पिता हूँ दो चिड़ियाओं का 
					जो चोंच में धान के कनके दबाए 
					पपीते की गोद में बैठी हैं 
				
					सिर्फ बेटियों का पिता होने से 
					कितनी हया भर जाती है शब्दों में 
					मेरे देश में होता तो है ऐसा 
					कि फिर धरती को बाँचती हैं 
					पिता की कवि-आँखें... 
				
					बेटियों को गुड़ियों की तरह 
					गोद में खिलाते हैं हाथ 
					बेटियों का भविष्य सोच 
					बादलों से भर जाता है 
					कवि का हृदय, 
				
					एक सुबह 
					पहाड़-सी दिखती हैं बेटियाँ 
					कलेजा कवि का चट्टान-सा होकर भी 
					थर्राता है पत्तियों की तरह 
				
					और अचानक 
					डर जाता है कवि 
					चिड़ियाओं से 
					चाहते हुए उन्हें इतना 
					करते हुए बेहद प्यार। 
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