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कविता

कोई नहीं सुनता

अशोक वाजपेयी


कोई नहीं सुनता पुकार --
सुनती है कान खड़े कर
सीढ़ियों पर चौकन्नी खड़ी बिल्ली,
जिसे ठीक से पता नहीं कि
डर कर भाग जाना चाहिए या
ठिठककर एकटक उस ओर देखना चाहिए।

कोई नहीं सुनता चीख --
सुनती है खिड़की के बाहर
हरियाए पेड़ पर अचानक आ गई नीली चिड़िया,
जिसे पता नहीं कि यह चीख है
या कि आवाजों के तुमुल में से एक और आवाज।

कोई नहीं सुनता प्रार्थना --
सुनती है अपने पालने में लेटी दुधमुँही बच्ची,
जो आदिम अँधेरे से निकलकर उजाले में आने पर
इतनी भौचक है
कि उसके लिए अभी आवाज
होने, न होने के बीच का सुनसान है।

 


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