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कविता

चींटी

अशोक वाजपेयी


चींटियाँ इतिहास में नहीं होतीं :
उनकी कतारें उसके भूगोल के आरपार फैल जाती हैं;
चींटी अपनी नन्ही-सी काया पर
इतिहास की धूल पड़ने देती है।

चींटियाँ सच की भी चिंता नहीं करतीं :
सच भी अपने व्यास में
रेंग रही चींटी को शामिल करना जरूरी नहीं समझता।

चींटी का समय लंबा न होता होगा :
जितना होता है उसमें वह उस समय से परेशान होती है
इसका कोई ज्ञात प्रमाण नहीं है।

इतिहास, सच और समय से परे और उनके द्वारा अलक्षित
चींटी का जीवन फिर भी जीवन है :
जिजीविषा से भरा-पूरा,
सिवाय इसके कि चींटी कभी नहीं गिड़गिड़ाती
कि उसे कोई देखता नहीं, दर्ज नहीं करता
या कि अपने में शामिल नहीं करता।

कवि की मुश्किल यह नहीं कि वह चींटी क्यों नहीं है
बल्कि यह कि शायद वह है,
लेकिन न लोग उसे रहने देते हैं,
न इतिहास, सच या समय।

 


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