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कविता

पत्ती

अशोक वाजपेयी


जितना भर हो सकती थी
उतना भर हो गई पत्ती
उससे अधिक हो पाना उसके बस में न था
न ही वृक्ष के बस में
जितना काँपी वह पत्ती
उससे अधिक काँप सकती थी
यह उसके बस में था
होने और काँपने के बीच
हिलगी हुई वह एक पत्ती थी

 


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