एक जीवित पत्थर की दो पत्तियाँ रक्ताभ, उत्सुक काँपकर जुड़ गईं
मैंने देखा :
मैं फूल खिला सकता हूँ।
हिंदी समय में अशोक वाजपेयी की रचनाएँ
अनुवाद
कविताएँ