hindisamay head


अ+ अ-

कविता

एक मुर्दे का बयान

श्रीकांत वर्मा


मैं एक अदृश्य दुनिया में, न जाने क्या कुछ कर रहा हूँ।
मेरे पास कुछ भी नहीं है -
न मेरी कविताएँ हैं न मेरे पाठक हैं
न मेरा अधिकार है
यहाँ तक कि मेरी सिगरेटें भी नहीं हैं।
मैं गलत समय की कविताएँ लिखता हुआ
नकली सिगरेट पी रहा हूँ।
मैं एक अदृश्य दुनिया में जी रहा हूँ
और अपने को टटोल कह सकता हूँ
दावे के साथ
मैं एक साथ ही मुर्दा भी हूँ और ऊदबिलाव भी।
मैं एक बासी दुनिया की मिट्टी में
दबा हुआ
अपने को खोद रहा हूँ।

मैं एक बिल्ली की शक्ल में छिपा हुआ चूहा हूँ
औरों को टोहता हुआ
अपनों से डरा बैठा हूँ
मैं अपने को टटोल कह सकता हूँ दावे के साथ
मैं गलत समय की कविताएँ लिखता हुआ
एक बासी दुनिया में
मर गया था।

मैं एक कवि था। मैं एक झूठ था।
मैं एक बीमा कंपनी का एजेंट था।
मैं एक सड़ा हुआ प्रेम था
मैं एक मिथ्या कर्तव्य था
मौका पड़ने पर नेपोलियन था
मौका पड़ने पर शहीद था।
मैं एक गलत बीवी का नेपोलियन था।
मैं एक
गलत जनता का शहीद था!


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में श्रीकांत वर्मा की रचनाएँ