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कविता

धरती

ए. अरविंदाक्षन


न जाने कैसे
गिरते-गिरते मैं बच गया
मानो किसी ने मुझे सहारा दिया हो
चारों तरफ मैंने देखा
कोई नहीं दिख रहा था
मैं वहीं खड़ा रहा
देखता रह गया
स्वयं से पूछता रह गया
कौन था वह
जिसने मुझे गिरने से बचाया

मैंने तुझे बचाया
यह आवाज कहाँ से आयी?
आकाश की तरफ देखा मैंने
क्षितिजों की तरफ देखा मैंने
धरती की तरफ देखा मैंने

मैंने ही तुझे बचाया
धरती से ही आवाज आ रही थी
बैठ गया मैं
लेकिन फिर कोई आवा नहीं आयी
इतना मुझे महसूस हुआ जरूर
मैं धरती की गोद में बैठा हूँ।

 


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