धान के खेतों से जब भी गुजरता हूँ अभिभूत होता हूँ खेतों की महक से रंग से लास्य से और संगीत से। फिर मैं बाँटता-फिरता हूँ संगीत हरियाली का कृषकों के स्वप्नों का दूर क्षितिज पर दृश्यवत् उनके अपार आह्लाद का
हिंदी समय में ए. अरविंदाक्षन की रचनाएँ