स्मृति मात्र नहीं है जल क्रीड़ा अहोरात्रि आस्था है उत्सवधर्मी जल क्रीड़ा। जल ही रहता है सब में भरा-भरा सब जल में डूबा-डूबा
हिंदी समय में ए. अरविंदाक्षन की रचनाएँ