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कविता

जल क्रीड़ा

ए. अरविंदाक्षन


स्मृति मात्र नहीं है
जल क्रीड़ा
अहोरात्रि आस्था है
उत्सवधर्मी
जल क्रीड़ा।
जल ही रहता है
सब में
भरा-भरा
सब
जल में डूबा-डूबा

 


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