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कविता

नदी

ए. अरविंदाक्षन


हर किसी के भीतर
एक नदी है
दुर्गा की तरह
प्रचंड रूप धारण करती है वह
उसके जल का प्रकोप है यह
सरस्वती बनती है
ज्ञान की गंगा बनती है वह
जल-कणों सा
वीणा का स्वर
नदी के आसपास
गूँजता है

 


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