उसकी देह को पहली बार जब मैंने छुआ था मेरी उँगलियाँ गीली हो गयी थीं कई दिनों तक उस जल-स्पर्श के सहारे मैं जीता रहा। अचानक एक दिन वह प्रलय-सी आयी मुझे डुबोया अपने जल में मेरे कानों में धीरे से कहा उसने जल रस ही है जीवन रस
हिंदी समय में ए. अरविंदाक्षन की रचनाएँ