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कविता

जीवन रस

ए. अरविंदाक्षन


उसकी देह को
पहली बार जब मैंने छुआ था
मेरी उँगलियाँ गीली हो गयी थीं
कई दिनों तक
उस जल-स्पर्श के सहारे
मैं जीता रहा।
अचानक
एक दिन वह प्रलय-सी आयी
मुझे डुबोया अपने जल में
मेरे कानों में
धीरे से कहा उसने
जल रस ही है जीवन रस

 


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