पूर्ववत अथवा 'पहले जैसा' वाले भाव को विभिन्न आशयों में व्यक्त करने के लिए हिन्दी में सर्वाधिक इस्तेमाल होने वाला शब्द कौन-सा है? इस सिलसिले में वापस या
वापसी जैसी अर्थवत्ता वाला कोई और शब्द हिन्दी में नजर नहीं आता। अलबत्ता 'लौट' के क्रियारूपों का वापसी के अर्थ में प्रयोग जरूर होता है। कहा जा सकता है कि
वापसी जैसी अभिव्यक्ति 'फिर' या 'पुनः' में भी है। मगर ध्यान रहे, ये पूरी तरह वापस के पर्याय नहीं हैं। "मैं वापस आया हूँ" इस वाक्य का प्रयोग 'फिर' या 'पुनः'
लगाकर "मैं फिर आया हूँ" अथवा "मैं पुनः आया हूँ" किया जा सकता है, किन्तु "मेरी किताब वापस करो" इस वाक्य में वापस के स्थान पर फिर या पुनः लगाने से मतलब हासिल
नहीं होता। हाँ, वापस के स्थान पर 'लौट' के रूप लौटा का प्रयोग करते हुए "मेरी किताब लौटा दो" जैसा वाक्य बनाया जा सकता है। हिन्दी की विभिन्न शैलियों और अन्य
कई भारतीय भाषाओं में खूब चलने वाले इस शब्द का प्रयोग करते हुए कभी ऐसा नहीं लगता कि इसकी आमद बाहर से हुई है। बोलचाल की हिन्दी में फारसी के जिन शब्दों ने
रवानी पैदा की है, उनमें वापस शब्द का भी शुमार है।
वापस के कुछ प्रयोग देखें - लौट आने के अर्थ में "वापस आना", गुमशुदा चीज मिलने के अर्थ में "वापस पाना", दोबारा अपने अधिकार में लेने के अर्थ में "वापस लेना",
किसी को लौटाने के अर्थ में "वापस करना" या "वापस देना" जैसे कई वाक्य हम दिन-भर बोलते हैं। वापस से ही वापसी भी बना है। वापसी में भी लौटने, फिर मिलने, दोबारा
प्राप्त करने जैसे भाव हैं। जॉन प्लैट्स के कोश में वापस को फारसी मूल का बताया गया है और इसे फारसी के दो पदों - 'वा'-'पस' के मेल से बना बताया गया है।
भाषाविदों के मुताबिक 'वा' का मूल वैदिक भाषा का प्रसिद्ध उपसर्ग 'अप' है जिसमें लौटने का भाव है। ध्यान रहे, ईरान की भाषाएँ अवेस्ता, पहलवी जैसे रास्तों से
गुजरते हुए विकसित हुई हैं। फारसी इनमें सबसे प्रमुख और सर्वमान्य है। प्राचीन ईरान में पारसिकों (जरतुश्ती) के धर्मग्रन्थ अवेस्ता में लिखे गए, जिसका वेदों की
भाषा से बहुत साम्य है। वेदों की भाषा और संस्कृत को लेकर लोगों में भ्रम है, वे उसे संस्कृत कहते हैं। वैदिकी और अवेस्ता को सहोदर माना जाता है, हालाँकि
अवेस्ता वैदिक भाषा जितनी पुरातन नहीं है। संस्कृत के 'अप' उपसर्ग के समकक्ष अवेस्ता के 'अप', लैटिन के 'अब'-ab, गोथिक के 'अफ़'-af, अंग्रेजी के 'ऑफ़' of के
मद्देनजर भाषाविज्ञानियों ने प्रोटो भारोपीय भाषा की 'अपो' apo- धातु की कल्पना की है। फारसी उपसर्ग 'वा' में लौटने, फिरने, खुलने, अलग, खिन्न जैसे भाव हैं।
अंग्रेजी के पोस्ट post 'पश्च' में भी लौटने का भाव है। संस्कृत के पश्च का फारसी समरूप पस है। कावसजी एडुलजी कांगा लिखित अवेस्ता डिक्शनरी के मुताबिक इसका
अवेस्ताई रूप भी पश्च ही है। संस्कृत के पश्च शब्द का अर्थ है 'बाद का', 'पीछे का' आदि। पश्च से ही हिन्दी के कई शब्द बने हैं जैसे पीछे, पिछाड़ी, पीछा आदि।
पश्च भारोपीय परिवार का एक महत्वपूर्ण शब्द है और इससे अनेक शब्द बने हैं। वापस में लौटने के भाव में लौटने, फिरने के भाव के पीछे अप से बने फारसी के वा और पश्च
से बने पस [अप-wa + पश्च-pas = वापस ] के मेल से जन्मी अर्थवत्ता है। वापस से बना वापसी दरअसल लौटने की क्रिया है जैसे उसकी वापसी हो गई। अब इस वापसी में लौट
आने और फिर अपने स्थान पर लौट जाने दोनों तरह के भाव हैं।