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कविता

मां

दिविक रमेश


रोज़ सुबह, मुँह-अंधेरे
दूध बिलोने से पहले
मां
चक्की पीसती,
और मैं
घुमेड़े में
आराम से
सोता।

-तारीफ़ों में बंधी
मां
जिसे मैंने कभी
सोते
नहीं देखा।

आज
जवान होने पर
एक प्रश्न घुमड़ आया है--
पिसती
चक्की थी
या मां?

 


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