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					रह तो बहुत दिनों से रहा है कबूतरशॉफ्ट के एक कोने में
 हमारे घर की।
 और उसका परिवार भी
 जब-तब फड़फड़ा लेता है पंख।
 और संगीत
 कुछ देर थमा रह जाता है
 गुसलखाने में
 अटका
 खिड़की के आस-पास।
 
					उस दिन बतिया रहा था कबूतरघर के बाहर
 पार के पेड़ पर
 किसी कबूतर से।
 
					मैंने सुनाऔर ध्यान से सुना
 कह रहा था चलते समय-
 'आना कभी हमारे घर।'
 
					सुन कर मुझे अच्छा लगा थाऔर मान लीजिए चाहे बाकी सब गप्प
 पर
 पहली बार लगा था
 कबूतर हमारा है
 और घर कबूतर का भी।
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