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					दैत्य ने कहा मैं घोषणा करता हूं 
					कि आज से सब स्वतंत्र हैं 
					कि सब ले सकते हैं आज से 
					भुनते हुए गोश्त की लाजवाब महक। 
				
					सब खुश हुए क्योंकि सब को खुश होना चाहिए था। 
					कितना उदार है दैत्य 
				
					दैत्य ने कहा 
					तकाजा है नैतिकता का कि नहीं भूनने चाहिए हमें दूसरों के शरीर 
					वह भी महज भुनते हुए गोश्त की महक के लिए। 
				
					सबने स्वीकार किया। 
					कितना महान है दैत्य 
				
					दैत्य ने कहा 
					खुद को जलाकर खुद की महक लेना 
					कहीं बेहतर कहीं पवित्र होता है महक के लिए। 
				
					सबने माना और झोंक दिया आग में खुद को। 
					कितना इंसान है दैत्य 
				
					दैत्य ने कहा 
					तुम्हें गर्व होना चाहिए खुद की कुर्बानियों पर 
					सब और और भुनने लगे मारे गर्व के। 
					कितना भगवान है दैत्य 
				
					दैत्य ने कहा 
					पर इस बार खुद से 
					कितना लाजवाब होगा इन मूर्खों का महकता गोश्त 
					आज दावत होगी दैत्यों की। 
					दैत्य हंसता रहा हंसता रहा 
				
					दांत 
				
					(बतर्ज : न हुआ, पर न हुआ मीर का अंदाज नसीब 
					जौक़ यारों ने बहुत जोर ग़ज़ल में मारा) 
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