कितना दुःख वह शरीर जज्ब कर सकता है ?
वह शरीर जिसके भीतर खुद शरीर की टूटन हो
मन की कितनी कचोट कुंठा के अर्थ समझ उनके द्वारा अमीर होता जा सकता है ?
अनुभव से समृद्ध होने की बात तुम मत करो
वह तो सिर्फ अद्वितीय जन ही हो सकते हैं
अद्वितीय याने जो मस्ती में रहते हैं चार पहर
केवल कभी चौंक कर
अपने कुएँ में से झाँक लिया करते हैं
वह कुआँ जिसको हम लोग बुर्ज कहते हैं
अद्वितीय हर व्यक्ति जन्म से होता है
किंतु जन्म के पीछे जीवन में जाने कितनों से यह
अद्वितीय होने का अधिकार
छीन लिया जाता है
और अद्वितीय फिर वे ही कहलाते हैं
जो जन के जीवन से अनजाने रहने में ही
रक्षित रहते हैं
अद्वितीय हर एक है मनुष्य
और उसका अधिकार अद्वितीय होने का छीन कर जो खुद को अद्वितीय कहते हैं
उनकी रचनाएँ हों या उनके हों विचार
पीड़ा के एक रसभीने अवलेह में लपेट कर
परसे जाते हैं तो उसे कला कहते हैं !
कला और क्या है सिवाय इस देह मन आत्मा के
बाकी समाज है
जिसको हम जान कर समझ कर
बताते हैं औरो को, वे हमें बताते हैं
वे, जो प्रत्येक दिन चक्की में पिसने से करते हैं शुरू
और सोने को जाते हैं
क्योंकि यह व्यवस्था उन्हें मार डालना नहीं चाहती
वे तीन तकलीफों को जान कर
उनका वर्णन नहीं करते हैं
वही है कला उनकी
कम से कम कला है वह
और दूसरी जो है बहुत सी कला है वह
कला बदल सकती है क्या समाज ?
नहीं, जहाँ बहुत कला होगी, परिवर्तन नहीं होगा
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