पढ़िए गीता बनिए सीता फिर इन सब में लगा पलीता किसी मूर्ख की हो परिणीता निज घर-बार बसाइए होंय कँटीली आँखें गीली लकड़ी सीली, तबियत ढीली घर की सबसे बड़ी पतीली भर कर भात पसाइए
हिंदी समय में रघुवीर सहाय की रचनाएँ