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एक समय की बात है
एक तोता और एक मैना थके हुए
बैठ गये
एक तालाब के किनारे पेड़ की डाल पर
शहर अपनी रफ्तार में
सुबह के ठीक पहले का अँधेरा
और तालाब में कुछ तैरता सा दिखता था
कौन है? मैना की आँख में कौतूहल
तोता गम्भीर -
नाम इसका रामधनी,
पिता टिकधरी पंडित
मकाम पंचफेड़वा, इंटरपास
इसे तलाश थी एक ऐसी जगह की
जहाँ गाड़ सके गाँव से आई बैरन चिट्ठियाँ
और साथ उसके आए
किसान पिता की कराह माँ की आँखों का धुआँ
पत्नी का एकान्त विलाप
और ग्राइप वाटर की खाली शीशियाँ
स्मृति में बचे रह गए पवित्र मन्त्रों के साथ
और भटकता रहा रामधनी
दिन रात हफ्तों महीनों वर्षों दशकों
इस शहर की गलियों चौराहा नुक्कड़ फुटपाथों पर
उम्मीद की एक आखिरी रोशनी तक
एक अदद पवित्र जगह की खोज में
- तोते ने एक ही साँस में कहा और उड़ गया
मैना देर तक डाल पर बैठी रही उदास
देखती रही
पानी पर तैरती और पानी में मिलती जा रही
उस आदमी की लाश
(कथा गया वन में... सोचो अपने मन में)
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