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कविता

भरोसे के तन्तु

विमलेश त्रिपाठी


ऐसा क्या है कि लगता है
शेष है अभी भी
धरती की कोख में
प्रेम का आखिरी बीज
चिड़ियों के नंगे घोंसलों तक में
नन्हें-नन्हें अण्डे
अच्छे दिनों की प्रार्थना में लबरेज किंवदन्तियाँ
चूल्हे में थोड़ी सी आग की महक
घर में मसाले की गन्ध
और जीवन में
एक शर्माती हुई हँसी

क्या है कि लगता है
कि विश्वास के
एक सिरे से उठ जाने पर
नहीं करना चाहिए विश्वास
और हर एक मुश्किल समय में
शिद्दत से
खोजना चाहिए एक स्थान
जहाँ से रोशनी के कतरे
बिखेरे जा सकें
अँधेरे मकानों में

सोच लेना चाहिए
कि हर मुश्किल समय लेकर आता है
अपने झोले में
एक नया राग
बहुत मधुर और कालजयी
कोई सुन्दर कविता

ऐसा क्या है कि लगता है
कि इतने किसानों के आत्महत्या करने के बाद भी
कमी नहीं होगी कभी अन्न की
कई-कई गुजरातों के बाद भी
लोगों के दिलों में
बाकी बचे रहेंगे
रिश्तों के सफेद खरगोश

क्या है कि ऐसा लगता है...
और लगता ही है...
एक ऐसे भयावह समय में
जब उम्मीदें तक हमारी
बाजार के हाथ गिरवी पड़ी हैं
कितना आश्चर्य है
कि ऐसा लगता है
कि पूरब से एक सूरज उगेगा
और फैल जाएगी
एक दूधिया हँसी
धरती के इस छोर से उस छोर तक...

और हम एक होकर
साथ-साथ
खड़े हो जायेंगे
इस पृथ्वी पर धन्यवाद की मुद्रा में

 


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