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कविता

प्रार्थना

विमलेश त्रिपाठी


नहीं चाहिए वह जिसके लिए
सजानी होती है गोटियाँ
शब्दों से अधिक महत्व अशब्दों का जहाँ
तिकड़मी दुनिया वह
नहीं चाहिए

नहीं चाहिए वह
जिसके होने से कद का ऊँचा होना समझा जाता

चाहिए थोड़ा सा बल, एक रत्ती भर ही त्याग
और एक कतरा लहू, जो बहे न्याय के पक्ष में
उतना ही आँसू भी
थोड़े शब्द
रिश्तों को आँच देते
जिनके होने से
जीवन लगता जीवन की तरह

एक कतरा वही, चाहे वह जो हो
लेकिन जिसकी बदौलत
पृथ्वी के साबुत बचे रहने की सम्भावना बनती है

 


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