धन-दौलत के कई ठिकाने हैं। सबसे बड़ा ठिकाना तो खजाना कहलाता है। तिजौरी (तिजोरी), पेटी या आलमारी छोटे-छोटे खजाने हैं। तिजौरी में गहने-बर्तन-रुपए सब आ जाते हैं। हिंदी में तिजौरी शब्द खूब प्रचलित है। यह आम तौर पर सेठ लोगों के यहाँ रहती है जिनका बड़ा कारोबार होता है। नगदी लेन-देन, गिरवी और सूद पर उधार देने वालों के यहाँ इसके दर्शन हो यूँ छोटी-मोटी तिजौरियाँ दुकानदार भी रखते हैं। तिजौरी शब्द मूल रूप से सेमेटिक भाषा परिवार का है और अरबी, हिब्रू, सीरियाई आदि कई भाषाओं में इसके कई रूप प्रचलित हैं। फारसी, उर्दू, हिंदी का तिजौरी शब्द बना है अरबी के तजारा से जिसका अर्थ होता है व्यापार। इसका हिब्रू रूप है तगार। तजारा का ही क्रिया रूप बना तेजारत (अरबी-फारसी में यही रूप प्रचलित है) जो हिंदी-उर्दू में तिजारत के रूप में प्रचलित है और जिसमें व्यापार अथवा कारोबार करने का भाव है। तुर्की जबान में इसका रूप हुआ तिकरेट।
व्यापार से संबंधित के अर्थ में हिंदी में तिजारत से तिजारती जैसा शब्द बना लिया गया है। आश्चर्य है कि जिस हिंदी ने अरबी के तजारा से तिजौरी और तिजारती जैसे शब्द बेधड़क बना लिए, उसने व्यापारी के लिए इसी कड़ी का ताजिर शब्द नहीं अपनाया। हिंदी में व्यापारी के लिए अरबी-फारसी मूल का सौदागर शब्द प्रचलित है। कारोबार से भी कारोबारी जैसा शब्द बना लिया गया जिसका अर्थ भी व्यापारी ही है। गुजरात में तिजौरी उपनाम भी होता है।
ति जौरी दरअसल सामान्य से कुछ अधिक मजबूत पेटी ही होती है। सामान्य दुकानदार तिजौरी के नाम पर पेटी ही रखते हैं। जिस तरह ताजिर यानी व्यापारी का तिजौरी से रिश्ता है वैसे ही पेटी का भी आम भारतीय सेठ से रिश्ता है। सेठ की कल्पना उसके फूले पेट के बिना संभव नहीं है और पेट से ही पेटी का रिश्ता है। पेटी शब्द संस्कृत मूल का है - यह बना है पेटम् या पेटकम् से जिसका अर्थ होता है थैली, संदूक, बक्सा आदि। पेटम् शब्द बना है पिट् धातु से जिसमें भी थैली का ही भाव है। पेट उदर के अर्थ में सर्वाधिक जाना-पहचाना शब्द है। पेट अगर बाहर निकला हो तो तोंद कहलाता है। गले से नीचे की ओर जाती हुई शरीर के मध्य भाग की वह थैली, जिसमें भोजन जमा होता है, पेट कहलाता है। किसी वस्तु के भीतरी-खोखले हिस्से को पेटा कहते हैं।
नदी की तली या जहाज की तली भी पेटा ही कहलाती है। पिटक, पेटिका आदि भी इसी कड़ी के अन्य शब्द हैं। समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में हारमोनियम बाजे के लिए पेटी शब्द आम तौर पर इस्तेमाल होता है। इस विदेशी वाद्य की बक्सानुमा आकृति के चलते इसे यह नाम मिला।

मुं बइया बोलचाल में पेटी अपने आप में मुद्रा का पर्याय बन गई है। मुंबई के अंडरवर्ल्ड में पेटी शब्द का अर्थ दस लाख से पच्चीस लाख रुपए तक होता है। इसका मतलब हुआ इतनी रकम से भरी पेटी। भाई लोग एक पेटी, दो पेटी बोलते हैं और समझनेवाले समझ जाते हैं। इसी तरह एक और शब्द है खोखा। पेटी से अगर बात नहीं बनती है तो खोखा माँगा जाता है। खोखा यानी एक करोड़ रुपए। आम तौर पर सड़क किनारे बक्सानुमा निवास और दुकानें, जो लकड़ी अथवा टीन की बनी होती हैं, खोखा कहलाती हैं। सामान भरने के छोटे डिब्बों को भी खोखा कहते हैं। खोल या खोली शब्द भी इसी कड़ी का हिस्सा हैं। महाराष्ट्र में खोल कहते हैं गहराई को। गहरा करने की क्रिया भी खोल ही कहलाती है। खोली से अभिप्राय छोटे कमरे से है। इन तमाम शब्दों का रिश्ता खुड् धातु से है जिसमें गहरा करने या खोदने का भाव है। कुछ विद्वान शुष्क शब्द से खोखला शब्द की व्यत्पत्ति बताते हैं जैसे सूखने के बाद वृक्ष में कोटर हो जाती है। मगर कोटर से ही खोखल का जन्म हुआ होगा, मुझे ऐसा लगता है।