हाबिल की मृत्यु के बाद एक दिन अचानक कैन और हाबिल की मुलाकात हो गई। वे रेगिस्तान से होकर गुजर रहे थे और दोनों ने एक-दूसरे को दूर से ही पहचान लिया क्योंकि
दोनों ही काफी लम्बे थे। दोनों भाइयों ने जमीन पर बैठकर आग जलाई और खाना खाया। शाम घिरना शुरू होने पर जैसा कि थके-माँदे लोग करते हैं, वे चुपचाप बैठे रहे।
आसमान में एक तारा टिमटिमाया, हालाँकि उसे अभी तक कोई नाम नहीं दिया गया था। आग की रोशनी में कैन ने देखा कि हाबिल के माथे पर पत्थर की चोट का निशान था। उसके
हाथ से वह कौर गिर गया जिसे वह अपने मुँह तक ले जा रहा था और उसने अपने भाई से उसे माफ कर देने के लिए कहा।
"मुझे मारने वाले तुम थे, या मैंने तुम्हें मारा था?"
हाबिल ने जवाब दिया, "मुझे कुछ याद नहीं है, हम यहाँ एक साथ हैं, पहले की तरह।"
"अब मैं समझ गया कि तुमने सचमुच मुझे माफ कर दिया है," कैन ने कहा, "क्योंकि भूलना, माफ करना होता है। मैं भी भूलने की कोशिश करूँगा।"
"हाँ," हाबिल ने धीरे से कहा, "जब तक पछतावा रहता है, गुनाह भी रहता है।"
(अनुवाद : मनोज पटेल)
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