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कविता

माँ, तुम नहीं हो

रविकांत


जब तुम थीं
कुछ विशेष नहीं लगता था
हाँ तुम्हारे जाने की बात
तब भी
बुरी लगती थी

आज तुम नहीं हो -
जैसे
मुख्य राग
नहीं बज रहा

कोलाहल
है

 


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