जब तुम थीं कुछ विशेष नहीं लगता था हाँ तुम्हारे जाने की बात तब भी बुरी लगती थी
आज तुम नहीं हो - जैसे मुख्य राग नहीं बज रहा
कोलाहल है
हिंदी समय में रविकांत की रचनाएँ