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कविता

कामना है

रविकांत


अपने एकांत में
अपनी कल्पनाओं में तुम्हें जिऊँ
यही कामना है

तुम्हारे बोले हुए शब्द
चमकती आँखें औ निगाहें
न मालूम कितनी प्यारी रेशमी मुस्कराहटें
ज्वर से भीगी हुईं
तुम्हारी आप-बीती की कथाएँ
और उनकी बूँदों से खिले हुए तुम्हारे गाल
मेरी कामना है कि ये सब
मेरी हर प्यास में शामिल हों

और खैर,
मेरे पास तो तुम हो ही
(तुम्हें अपने से दूर कब मानता हूँ)
तुम्हारे साथ को
अपनी साँसों में गिनूँ
यही कामना है

 


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