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कविता

संकल्प-क्षण

रविकांत


यह एक सशक्त और वीर क्षण है

बुझ जाए
चाहे हो अगला ही क्षण
आत्म-छल से भरा

अमोल है पर
संकल्प से तना
नाना सुविधाओं

विराट दुर्बलताओं के बौनेपन को
अपने प्रकाश में उद्घाटित कर
एक सर्वव्यापी सत्य को
हस्तगत कराता
यह क्षण

चेतना के वांछित लोक की जमीन की
सघन उदात्त्ता को
प्रत्यक्ष कर
अपने अपूर्व उत्साह से
समस्त जैसे-भी इतिहास को
सार्थक करता है
यह क्षण

 


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