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कविता

अगला मंगलवार

रविकांत


जानता हूँ
अगला मंगल नहीं आ रहा है इधर
फिर भी
कहता हूँ अपने आप से
- आना तो है ही अगला मंगल

अगले मंगल के भरोसे ही
छोड़ रखता हूँ मुश्किल कामों को

महीनों तक नहीं होता कोई मंगल
कोई कायदे का मंगल आता ही नहीं कभी

 


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हिंदी समय में रविकांत की रचनाएँ