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कविता

कविता

रविकांत


1

कविताएँ कुंजी हैं
संसार के तालों की

2

बुन लेती है जब अपने ताने में
नन्ही-नन्ही बातें
खूब बड़ी-सी हो जाती है
कथा नहीं होती
कविता कथा का मर्म कहती है

सुंदर और सच्ची
ईमानदारी का ढोल पीटे बिना
तपती रहती है
तुम्हारे इंतजार में
कविता

3

ऐसा
नहीं होता
नहीं हो सकता
कि
एक कविता लिखूँ अच्छी
और सोचूँ, कि
सँवर गया दिन
सफल रहा
आज का
सोकर उठना

बिंधा रहता हूँ
अच्छी कविता के मर्म से
कई समय,
डरता रहता हूँ
कि
उबर न जाऊँ कहीं
इससे

अच्छी कविता
कविता नहीं रह जाती कभी

धुआँ बन जाती है
फेफड़ों का मेरे

4

लिख रहा हूँ एक कविता
जिसे
शब्दों से पूरी नहीं करना

5

हवा से निचोड़ कर बनाए गए रस पर
कल्पना को गूँथ कर बनाए गए जेवरों पर
कविता
मुहर है मेरी
मेरा हस्ताक्षर है
चीजों पर

अनछुए भावों के
अनपहचानी परंपराओं के गले में
मेरी भटकती लालसाओं की वरमाला है
अपनी नफरत, अपने अपमान को मरोड़कर
सब तीखे अहसासों को

अपने प्रेम में सान कर
बनाई गई पकौड़ी में छोड़ा गया
मेरे हुनर का स्वाद है

मेरी साम्राज्यवादी इच्छाओं का चरम
सफलतम प्रतिफलन है

मेरे अँगूठे का निशान है
हथेलियों की छाप है
मेरे अक्स का डाटा-फार्म है
कविता

 


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