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कविता

निर्णय

रविकांत


जगमग मुख
औंधे पड़े हैं सब स्वप्न
हमारे

माह-माह वर्ष-वर्ष तक
प्रतिक्षा है पुरजोर उन्हें
हमारी

कूपमंडूकों का अंतिम निष्कर्ष भी
उनकी जेब में पसीज रहा है

सब हँस रहे हैं
आपस में

 


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हिंदी समय में रविकांत की रचनाएँ