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कविता

उठा-पटक

रविकांत


मेरी तुम्हारी तब तक छनेगी
जब तक तुम मेरी
विस्तृत सुविधाओं में प्रवेश न करो
और अगर तुमने
मेरी बंजर जमीनों के किसी टुकड़े को
उर्वर बनाने का स्वप्न देखा
तो मैं तुम्हारी ओर से सचेत हो जाऊँगा

तुम मेरी काट हो
मैं तुम्हारी
हम दोनों
एक दूसरे का भला चाहते हैं

इधर मैं
अपने सपने में तुम्हें कुचलता हूँ
पछताता हूँ जागकर

उधर तुम पानी पीते हो, पसीना पोंछ कर
देखते हो अँधेरे में चमकती हुई घड़ी

फिलहाल हम सबसे अच्छे दोस्त हैं
क्योंकि हममें है प्रेम, परस्पर
हम मिलना चाहते हैं
अब भी

 


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