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कविता

न फोन, न चिट्ठी

रविकांत


बंधु जो दूर रहते हैं
उन्हें चिट्ठियाँ नहीं लिखता
जिनसे रोज मिलने का मन करता हैं
उनसे भी
बहुत दिनों तक नहीं मिलता
फोन पर हाल भी नहीं पूछता उनका

सोचता हूँ
क्या हाल बताऊँगा अपना?
वे पूछेंगे...
कोई नया समाचार?
और क्या कर रहे हैं आजकल आप?

क्या सुनाऊँगा उन्हें?
क्या बताऊँगा?

 


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हिंदी समय में रविकांत की रचनाएँ