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कविता

नयन

रविकांत


(दिवंगत मित्र नन्हें की मुँहबोली भतीजी से बातें)

कक्का,
आप मेरा नाम जानते हैं?
- नयन
नहीं, नयन तो घर का है
स्कूल वाला नाम बताइए?
- मुझे नहीं पता

अच्छा, आप मुझसे कुछ माँग लीजिए
- क्या माँग लूँ?
कुछ भी माँग लीजिए,
जानते हैं
मेरा नाम उमा है!
गाँव में सब जने मुझसे
अपने मन की चीजें माँगते हैं
और मैं
हाथ उठा कर तथास्तु कह देती हूँ

कक्का, आपका घर बहुत अच्छा है
हम पूरा घूम आए, लेकिन
आपकी फुलवारी में तो एको फूल ही नहीं है
अच्छा बताइए
हमने अपनी फुलवारी में क्या लगाया है?
- कल बताएँगे
उँ... हूँ... दिद्दी से पूछिएगा आप!
हम बताएँ
हमने अभी गेंदा लगाया है,
गुड़हल लगाया है,
चाँदनी लगाया है,
और गुलाब तो मिला ही नहीं

आप दिद्दी के जन्म दिन के लिए
बलून फुला रहे हैं,
ऐसे नहीं
बलून में पहले टॉफी भरिए तब फुलाइए
हम अपनी पसंद के बलून फुलाएँगे,
नीले, धानी और केवल ये वाले
क्या कहते हैं इस रंग को?

क्या लिख रहे हैं?
कक्का, आप पेन कैसे पकड़ते हैं!
- तुम कैसे पकड़ती हो?
दीजिए बताएँ, यह देखिए
हम तो ऐसे पकड़ते हैं
- इतने ऊपर से
हाँ, इसीलिए तो हमारी रायटिंग अच्छी है
- अच्छा, तो क्या मतलब
मेरी खराब रायटिंग है,
और नहीं तो क्या
यहाँ वालों में सबकी रायटिंग खराब है
न न, केवल दिद्दी-बुआ की छोड़कर
जैगम कक्का की तो हा... हा...
लगता है जैसे बिस्तुइया
धूल पर चल गई हो
- बड़ी आईं, शिवगढ़ की राजकुमारी
वो तो हूँ ही,
पता है
अभी जब हम लोग
यहाँ आने के लिए चलने लगे थे
तब हमारी सब सहेलियाँ
हमें छोड़ने पंप तक आई थीं

वैसे, मैं अपनी कमी बताऊँ कक्का -
जब मैं इलाहाबाद का नाम सुनती हूँ
तो नन्हे कक्का याद आने लगते हैं

 


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