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कविता

घर से दूर

रविकांत


चले आ रहे हैं धुले-मैले बादल
जैसे उड़ी आ रही हो धुनी जाकर
जम्मू से जयपुर तक के शहरों की सब रुई

आसमान में एक पंक्षी
घर नहीं लौटना चाहता शायद
बहुत देर, शाम हुई
इधर-उधर मँडराता
वह कहीं नहीं जा रहा है
यहाँ परदेस में बैठा हूँ मैं
मुझे अपना भाई याद आ रहा है
बहनें और माँ याद आ रही हैं
जिससे विवाह करने का वादा कर आया हूँ
साथ-साथ
वह भी याद आती जा रही है

पंक्षी, ओ पंक्षी!
तुम मेरे पास आओ
इस नीम के पेड़ पर बैठो
यहीं बस जाओ

मैं अपने घर से रूठ कर यहाँ आया था
और नहीं गया वापस
मुझे मेरे लोग बहुत याद आते हैं
मैं एक दिन अपने घर वापस चला जाऊँगा
तुम भी मेरी ही तरह
अपने घर से रूठ तो नहीं आए हो?

सोच लेना खूब
एक बार
संसार में सबको माफ कर देना
अपने लोगों के ताने सुनने
एक बार वहाँ हो आना
जरूर

 


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