मैं संघर्ष की एक श्रृंखला हूँ मेरे असमाप्त सुख में अकूत दुःख भरा है
दुःख के गाढ़े द्रव से उबरना ही मेरा सबसे बड़ा सुख है
और अपनी चेतन आँखों के सामने मेरा लाचार हो जाना ही मेरा सबसे बड़ा दुःख है
हिंदी समय में रविकांत की रचनाएँ