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कविता

हिचक खुल जाने पर

रविकांत


सूत के धागे से
सुरक्षा की सीमा-रेखा बनाई
बस्ती के
अशंक, विश्वासी लोगों ने

वर्षों तक
किसी ने आँख नहीं उठाई उधर
सूत ही मजबूत फाटक बना रहा,

जब तक शील का पर्दा
'हमारी' आँखों में चमकता रहा

 


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हिंदी समय में रविकांत की रचनाएँ