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कविता

सदी के अंत में

रविकांत


सदी जिन दुःस्वप्नों से उबर आई है
गर्व कर सकता था मैं सबसे पहले
उन्हीं पर
लिखना चाहता था मैं अपना सब कुछ
सदी के नाम

यदि उतर चुका हो हमारी याददाश्त से
सती का आखरी चेहरा तो
भुला दिया जाय तत्काल
इस प्रक्रिया को

यदि न रह गई हो शेष अश्पृश्यता
तो पर लिखे
'अश्पृश्यता मानव जाति पर कलंक है' के नारे
मिटा दिए जायँ
यदि हर शहर के पास एक-एक तहखाना हो
जिसमें समा सकें
हजारों-हजार लोग चुपचाप
तो
साफ हो जाने चाहिए सबसे पहले
शहरों के जख्म
जैसे
लुप्त हो गई है कोढ़ी सदी
हमारे भीतर

 


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हिंदी समय में रविकांत की रचनाएँ