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कविता

एक-एक कर

रविकांत


दरवाजा तोड़ा जा रहा था
उन्हें

आज यह घर लूटना था
वह अंतिम दीवार में
कोई तीसरा कमरा खोज रही थी,
कोई पिछला दरवाजा

पड़ोसियों को बुरे सपने आ रहे थे -
लुटेरों ने छुपा रखे हैं
तमंचे,
कुछ अनौपचारिक बम
उनके सपने में
धुन के पक्के
कुछ सपाट चेहरे
सोई हुई स्त्रियों की प्रशंसा कर रहे थे

दीवार ढह जाय!
काश! कोई युद्धक विमान
बम गिरा
छत को ध्वस्त कर दे
(खोल दे कोई राह...)
- कुछ करना चाहती थी वह

आस-पास का हर दरवाजा
एक-एक कर तोड़ा जाय
उससे पहले
वह खोजती रही चोर दरवाजा...
कोई रास्ता...

 


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