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कविता

आमीन

रविकांत


आज मैंने शरद के पूरे चाँद को चूमा
चाँद को चूमा कई बार
चूमा ऐसे मानो मेरे गले से लगा हो वह
चूमा ऐसे मानो हाथों से टिका हो
खूब-खूब चूमा चाँद को मैंने आज

आज उससे मन की बातें ही नहीं
प्रार्थनाएँ भी कीं उससे
इन दिनों जो बात बहुत उमड़ रही थी मन में
जी खोल कर कही मैंने उससे

उसने दुआएँ भी दीं
मुस्कराया भी
चाँद ने मुझे थपथपाया भी!

सहरी करके आ रहा
कोई भोर का पंक्षी
चाँद को पार करता हुआ
कह गया 'आमीन' भी
आज खूब गुफ्तगू हुई चाँद से मेरी

 


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हिंदी समय में रविकांत की रचनाएँ