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कविता

हिसाब-वर्ष

रविकांत


एक वर्ष-बड़ा रहा काफी
बीते एक वर्ष में खूब झुलसाया गया मैं
अपमानित होता रहा साल भर
साल भर खुदकुशी का माहौल रहा
आत्महत्या को टालने में बीता, बीता साल

शायद, मैंने भी पैदा किए हों
किसी के लिए, कहीं, ऐसे हालात

अब वो दिन तो खैर नहीं ही रहे
जब कहते थे हम
- ये है सफेद
- ये है स्याह

कितना त्रासद होता है
जानते हुए भी
यह न कह पाना कि
- तुम चोर हो

क्योंकि जानता हूँ
चोर की पहुँच में हैं कई और चोर
और
चोरों ने पकड़ रखे हैं कई और छोर
खुल सकते हैं धागे
तार-तार हो सकती है धोती
नहीं, नंगा होने की हैसियत नहीं मुझमें
कम से कम अकेले तो बिल्कुल भी नहीं

 


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हिंदी समय में रविकांत की रचनाएँ