हिंदी का खंड शब्द आया है संस्कृत के खण्ड: से जिसका अर्थ है दरार, खाई, भाग, अंश, हिस्सा, अध्याय, समुच्चय, समूह आदि। इस खण्ड में ही आज भारत समेत दुनिया के कई इलाकों के आवासीय क्षेत्रों, प्रदेशों और नगरों के नाम छुपे हुए हैं। संस्कृत में एक धातु है खड : जिसका अर्थ होता है तोड़ना, आघात करना आदि। खण्ड का भी यही अर्थ है। ये सभी क्रियाएँ आश्रय निर्माण से जुड़ी हैं। पाषाण, प्रस्तर, काष्ठ आदि सामग्री को तोड़-तोड़ कर इस्तेमाल के लायक बनाने का श्रम मानव ने किया। पाषाण के खण्ड-खण्ड जोड़ कर विशाल आवासीय प्रखण्ड बनाए। मूलतः इसी तरह बस्तियाँ बसती चली गईं और खण्ड शब्द का प्रयोग आवास के दायरे से बाहर निकलने लगा। गौरतलब है कि आश्रय निर्माण की प्रक्रिया में क वर्ण की विशिष्टता यहाँ भी कायम है क्योंकि इसी वर्णक्रम की अगली कड़ी ख भी है। प्रभाग या अंश के लिए खण्ड शब्द का भौगोलिक क्षेत्रों के नामकरण में भी प्रयोग शुरू हुआ और देश, प्रदेश व क्षेत्र के लिए भी खण्ड शब्द चल पड़ा। उत्तराखण्ड , बघेलखण्ड, झारखण्ड, रुहेलखण्ड जैसे भौगोलिक नाम वहाँ रहनेवालों की पहचान और दिशा के आधार पर ही पड़े हैं।
प्रा चीन ईरानी और अवेस्ता में भी इस खड:, खड या खण्ड की व्याप्ति आवासीय भू-भाग के तौर पर हुई। खान या खाना शब्द में भी आश्रय का बोध होता है क्योंकि इन शब्दों का निर्माण खन् धातु से हुआ है जिसका अर्थ है खोदना, तोड़ना, छेद बनाना आदि। खन् शब्द के मूल में खण्ड ही है जो ध्वनिसाम्य से स्पष्ट हो रहा है। उजबेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान आदि इलाकों में कई शहरों के नामों के साथ कंद शब्द लगा मिलता है जैसे ताशकंद, समरकंद, यारकंद, पंजकंद आदि। ये सभी मूलतः खण्ड ही हैं। इनमें से ज्यादातर शहर प्राचीन ईरानी सभ्यता के दौर में बसे हैं इसीलिए बस्ती के रूप में खण्ड शब्द कंद, खान, खाना आदि कई रूपों में यहाँ उपस्थित हैं।
ताशकंद में ताश दरअसल तुर्की भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है पत्थर। कंद नाम से जुड़ी जितनी भी बस्तियाँ थीं वे सभी दुर्ग-नगर ही थीं। जाहिर है कि दुर्ग का निर्माण वहीं होता है जहाँ चट्टान और पहाड़ की उपलब्धता हो। समरकंद के साथ जुड़ा समर शब्द प्राचीन ईरानी के अस्मर से बना है जिसका अर्थ होता है प्रस्तर, चट्टान आदि। दिलचस्प यह कि संस्कृत में अश्म शब्द का प्रयोग भी पत्थर के लिए होता है। अस्मर और अश्म की समानता गौरतलब है। इस अश्म की मौजूदगी फॉसिल के हिन्दी अनुवाद जीवाश्म में देखी जा सकती है जो जीव+अश्म से बना है। इसमें निष्प्राण देह के प्रस्तरीभूत होने का ही भाव है। कुल मिलाकर प्राचीन ईरानी में कंद, कुड, कड, कथ आदि तमाम शब्द किला, कोट में रहनेवाली आबादी यानी दुर्ग-नगर की अर्थवत्ता ही रखते हैं।
द्वा पर काल में कुरु प्रदेश का प्रसिद्ध खांडव वन, जो बाद में खांडवप्रस्थ या इंद्रप्रस्थ प्रसिद्ध हुआ, एक भू-क्षेत्र के तौर पर ही जाना जाता रहा। खंड से ही बना है खांडव अथवा खाँड अर्थात गुड़ का एक रूप। इसे यह नाम मिला है गन्ने की वजह से क्योंकि संस्कृत में गन्ने को भी खण्डः ही कहा जाता है। गौरतलब है कि गन्ना प्राकृतिक रूप से कई हिस्सों में बँटा रहता है। खण्डः में निहित अंश को ही पिंड के रूप में भी देखा जा सकता है। इसीलिए जड़-मूल वनस्पति के लिए फारसी में भी और संस्कृत में भी कंद शब्द मिलता है। ये पिंड ही होते हैं जैसे शकरकंद , जिमीकंद। और हाँ, मिठाई के नामों में भी यही खंड, कंद के रूप में मौजूद है जैसे कलाकंद।