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कविता

अनुपस्थिति

कुमार अनुपम


यहाँ
तुम नहीं हो

तुम्हारी अनुपस्थिति के बराबर
सूनापन है विचित्र आवाजों से सराबोर
धान की हरी हरी आभा
और महक है
मानसून की पहली फुहार की छुवन
और रस है

तुम नहीं हो यहाँ
तुम्हारी अनुपस्थिति है


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