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कविता

उसका देखना

कुमार अनुपम


बीमार था भाई और अस्पताल भरा हुआ

 

खुले आकाश के नीचे

नसीब हुआ उसे किसी तरह एक बेड

बेहद जद्दोजहद के बाद

ऐसा आपातकाल था

 

ड्रिप की सीली-सी आवाज थी जब बुदबुदाया -

हमारे देखने की सीमा तो देखिए !

वह चाँद देख रहा था और तारे

अब उसका बोलना बर्फ हो रहा था -

और जमीन पर थोड़ी ही दूरी पर

चलता हुआ आदमी तो ओझल हो जाता है

यकायक हमारी निगाह से

भैया, देखिए जरा कितने पेंच हैं इस दुनिया में !

 

वह बहुत मासूम दिख रहा था और खतरनाक तरीके से गंभीर

 

अब मैं

उसे बीमार कहकर शर्मिंदा हो रहा हूँ


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