hindisamay head


अ+ अ-

कविता

कविता नयनतारा डैश डैश डैश

कुमार अनुपम


तह करके

रखता रहा हूँ

सपने कई स्थगित और अधनींद

और यंत्रवत भटकते कई सफर भी

 

कि चलने से ही

नहीं तय होती हैं दूरियाँ

 

अर्थ का शिल्प है एक अबोला भी

वर्णमाला की मूर्तता के विरुद्ध

 

जहाँ लिखा है जीरो किलोमीटर

वहीं से ही

नहीं शुरू होती राह

जैसे शब्द जो दुहराए जा रहे आदतन

नियमित ध्वनि तक ही

नहीं उनका आयतन

 

स्वप्न का सौंदर्यशास्त्र

अनूठा उनके हित

संबंध नहीं

जिनका स्वर से

 

जूड़े में खुभा बैंजनी एक फूल भर

नहीं हैं स्मृतियाँ

भोपाल अफगानिस्तान नंदीग्राम भी हैं

खोई हुई सरस्वती के सुराग

 

अबोध आँखों की प्यास अथाह

भटकती तलाशती नयनतारा

सुनामी के अवक्षेप में

कविता ‘...’ के स्वागत में प्रतीक्षातुर

 

कि संभावना एक जिंदा शब्द है


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में कुमार अनुपम की रचनाएँ