उनके पास
अपनी ध्वनि थी
अपनी बोली थी
फिर भी
गूँगे थे वे
स्वीकार था उन्हें
अपने स्वर का तिरस्कार
इसलिए वे
अंग्रेजी के अरण्य में रहते थे
हिंदी समय में कुमार अनुपम की रचनाएँ