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कविता

सूचना विस्फोट की पृष्ठभूमि में

कुमार अनुपम


रतनजोत की सुगंध परस गई पहले

मोबाइल पर बाद में चहकी चिड़िया -

मैटिनी शो तय रहा, ‘रब ने बना दी जोड़ी’,

 

सुबह इस सूचना में जागी भी नहीं थी अभी

कि आ गया अखबार

 

- इतने मरे   उतने घायल

इतने बाढ़ में बहे  उतनों के हाथों पर मंदी की फटकार

इतनी ट्रेन दुर्घटना  उतनी अस्मत तार तार

तुरत-फुरत सूचनाओं के हाड़ मांस मारमार -

 

सनसनीखेज खुलासों में मुस्तैद मीडिया की नजर

से शायद ही बची हो कोई खबर

इसी सांत्वना और सूचना-समृद्ध होने की आश्वस्ति से भर

टूथब्रश पर लगाया पेप्सोडेंट और

सूचनाओं के झाग में लथपथ अचानक

कुछ ऐसा लगा कि खबरों में नहीं बची है

पिपरमिंट भर भी सनसनी

 

इतना अभ्यस्त और आदी बना दिया है एक मीडिया ने हमें

कि उदासीन या नृशंस अथवा क्रूर की हद तक कुंद

 

किसी सधे षड्यंत्र की क्या नहीं मिलती इसमें कोई खबर

 

गैरमुमकिन नहीं कि इन पंक्तियों को भी

इस सूचना विस्फोट की पृष्ठभूमि में

आप पढ़ें  महज एक सूचना की तरह

कि अचानक बजे मोबाइल

और अपने खून-से सगे संबंधी

की अंतिम खबर मिले

(कृपया कवि की बदतमीजी माफ करें!)

और लगे यह भी महज एक सूचना

 

और ऊहापोह तय न कर सके

कि चिड़िया के साथ ‘रब ने बना दी जोड़ी’ के शो

और सगे की अंतिम विदा में किसमें शिरकत उचित

या यह भी संभव

कि इनकी तुलनात्मक समीक्षा भर

भी न जगे ऊहापोह

 

सूचना विस्फोट में संवेदना का हलाक होना खबर नहीं

 

कि रतनजोत की सुगंध कैसे तबदील हुई चिराइंध गंध में

कौन-सा परतालूँ अखबार

किस चैनल पर सेट करूँ

नेट पर कहाँ करूँ सर्फिंग

किसे घुमाऊँ मोबाइल

कहो कहो

सूचना विस्फोट के जेहादियो

इतनी-सी सूचना दो!


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