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कविता

अमृत कुंड

पुष्पिता अवस्थी


प्रेम के हठ योग में
जाग्रत है -
प्रेम की कुण्डलिनी

रन्ध्र-रन्ध्र में
सिद्ध है - साधना

पोर-पोर
बना है - अमृत-कुंड
प्रणय-सुषमा
प्रस्फुटित है - सुषुम्ना नाड़ी में
कि देह में
प्रवाहित हैं - अनगिनत नदियाँ।

एकात्म के लिए

अधर चुप रहते हैं
आँखें खुली
पर
मौन

आत्मा साधती है -
अलौकिक आत्म-संवाद
पर से एकात्म के लिए

सम्पूर्ण देह
पृथ्वी की तरह
सृष्टि करती है - प्रकृति का,

प्रकृति में,
प्रेम का
अनश्वर
और
अहर्निश।

 


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