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प्रेम के हठ योग में
जाग्रत है -
प्रेम की कुण्डलिनी
रन्ध्र-रन्ध्र में
सिद्ध है - साधना
पोर-पोर
बना है - अमृत-कुंड
प्रणय-सुषमा
प्रस्फुटित है - सुषुम्ना नाड़ी में
कि देह में
प्रवाहित हैं - अनगिनत नदियाँ।
एकात्म के लिए
अधर चुप रहते हैं
आँखें खुली
पर
मौन
आत्मा साधती है -
अलौकिक आत्म-संवाद
पर से एकात्म के लिए
सम्पूर्ण देह
पृथ्वी की तरह
सृष्टि करती है - प्रकृति का,
प्रकृति में,
प्रेम का
अनश्वर
और
अहर्निश।
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