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कविता

नाराज आदमी

संजय कुंदन


क्या कर सकता है अधिक से अधिक
एक नाराज आदमी
बहुत करेगा तो ओढ़ लेगा चुप्पी की चादर
या बन जाएगा पत्थर
दिखेगा एक बेडौल मूर्ति की तरह

हालाँकि लाख कुरेदो वह नहीं बता पाएगा
कि वह किससे नाराज है
बहुत तंग करने पर कह देगा कि
वह खुद से नाराज है
पर यह सही जवाब नहीं होगा
यही तो समस्या है कि
उसे कई चीजों का सही जवाब नहीं मिल पाता
वह हर चीज को उसकी सही जगह पर देखना चाहता है
खुद को भी
लेकिन सही जगह मिलना कहाँ है आसान

अपनी नाराजगी के सूत्र खोजते हुए
अक्सर और उलझ जाता है नाराज आदमी
फिर वह खुद को मनाना शुरू कर देता है
चेहरे पर पानी के छींटें मारता है
और मुस्कराने जैसा मुँह बनाता है

वह तेज कदमों से लौटता है
गौर से देखने पर पता चलता है कि
उसकी एक मुट्ठी बँधी हुई है

उसमें उसने बचा कर रख लिया होता है
अपना थोड़ा गुस्सा।

 


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